बच्चों का दर्द - पेपर लीक
रचना - मनीष शर्मा
पेपर लीक कराने वाले
और हराम का खाने वाले
बच्चे होंगे लूले लंगड़े...
तब जानोगे दर्द सुनहरे...
उनकी भी तकलीफ है होती..
बनती नहीं शाम को रोटी...
छह महीने दूर हो गए ..
फिर से हम मजबूर हो गए...
मरता नहीं आंख का पानी...
शर्म कर रही है रजधानी...
होती है बलभर बेईमानी...
ढूंढ लो अब चुल्लू भर पानी...
सपने चकनाचूर हो गए है...
ज़मीं आसमां दूर हो गए....
फिर से हम मजबूर हो गए...
आती जाती सरकारो से...
प्रश्न कर रहे दरबारों से...
कब तक हमको छलोगे साहब..
साथ भी लेके चलोगे साहब...
वोट दिया है साथ दिया है...
दिन से लेकर रात दिया है....
ख्वाब हमारे चूर हो गए...
फिर से हम मजबूर हो गए...