गर्भावस्था में ऑटिज्म !

 गर्भावस्था में ऑटिज्म !

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर यानी एएसडी में व्यक्ति ठीक से संवाद करने और खुद को अभिव्यक्त करने की क्षमता खो देता है। इसका विकास गर्भावस्था में भी हो सकता है

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) एक ऐसी स्थिति है, जहां किसी व्यक्ति को सामाजिक कौशल, बोलने और समाज के साथ संपर्क स्थापित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यह एक प्रकार की डेवलपमेंटल डिसएबिलिटी है, जिसमें वह ठीक प्रकार से संवाद करने और खुद को अभिव्यक्त करने की क्षमता खो देता है। भारत में 0.2 प्रतिशत बच्चे इससे प्रभावित हैं। लेकिन इनकी संख्या अधिक हो सकती है, क्योंकि बहुत- से लोगों की पहचान नहीं हो पाती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।


 एएसडी के कई प्रकार हैं। एएसडी पीड़ितों में अलग-अलग गुण और अक्षमताएं या चुनौतियां होती हैं। ऐसे लोगों को दैनिक जीवन में सहायता की जरूरत होती है, जबकि कुछ पूरी तरह स्वतंत्र होकर रह सकते हैं। ऑटिज्म के कारण अनिश्चित हैं। ये पर्यावरणीय, जैविक और आनुवांशिक कारकों का संयोजन हो सकते हैं। एएसडी अक्सर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकार, दौरे, नींद विकार, चिंता, अवसाद और ध्यान संबंधी अन्य मुद्दों से जुड़ा होता है। क्या है वजह : ऑटिज्म के जोखिम कारकों में किसी अपने को एएसडी होना, माता या पिता में एएसडी का पारिवारिक इतिहास, माता-पिता में नाजुक एक्स सिंड्रोम, मिर्गी जैसी आनुवांशिक या क्रोमोसोमल स्थितियां, माता-पिता में ऑटोइम्यून रोग, 35 वर्ष से अधिक

क्या है वजह : ऑटिज्म के जोखिम कारकों में किसी अपने को एएसडी होना, माता या पिता में एएसडी का पारिवारिक इतिहास, माता-पिता में नाजुक एक्स सिंड्रोम, या क्रोमोसोमल स्थितियां, माता-पिता में ऑटोइम्यून उम्र में माता-पिता बनना, गर्भावस्था के दौरान रूबेला और सीएमवी जैसे संक्रमण, पोषक तत्वों की कमी, एंटीपीलेप्टिक्स (वैल्प्रोएट), एंटीडिप्रेसेंट (एसएसआरआई) जैसी दवाएं आदि शामिल हैं। समय से पहले प्रसव पीड़ा, जन्म के समय शिशु का कम वजन, गर्भावधि मधुमेह, प्रसव के दौरान समस्याओं की वजह से ऐसा होता है। इसके अलावा प्लास्टिक की वस्तुओं (बोतल, कप, कंटेनर), पेंट, नए कालीन आदि में पाए जाने वाले विषाक्त पदार्थों संपर्क में आने से भी यह स्थिति बनती है। इन विषाक्त पदार्थों में बीपीए, पीबीडीई, पीसीबी, पीसीडीडी आदि शामिल होते हैं। इसके साथ ही यातायात के धुएं के कारण वायु प्रदूषण, सौसा और पारा जैसी भारी धातु और प्रसवपूर्व तनाव एवं चिंता भी इसकी वजह है। लड़कों में यह डिसऑर्डर 4 गुना ज्यादा देखा जाता है।

लक्षणों की पहचान एएसडी को 6- 12 महीने की उम्र में भी देखा जा सकता है, लेकिन आमतौर पर यह 3 साल की उम्र में होता है। सामान्यतः यह जीवन भर रहता है। शुरुआती पहचान और उचित उपचार से विकार को कम किया जा सकता है। कुछ बच्चों में यह चिंता, अवसाद और एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर) से जुड़ा होता है। इसका निदान, संदेह पर आधारित है, इसलिए चिकित्सा परीक्षण या अन्य उपकरण जैसे कोई खास तरीके नहीं हैं। आमतौर पर चिकित्सक पीड़ित के व्यवहार और विकास के आधार पर उपचार करते हैं। गर्भावस्था में ऑटिज्म के लक्षणों की पहचान के लिए शोध जारी हैं। ऑटिज्म के जोखिम को कम करने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं, लेकिन इसे

पूरी तरह से रोक पाना संभव नहीं है। उपाय भी जान लें दंपति की उम्र 21 से 35 वर्ष हो, जब वे माता-पिता बनें। चिंता, तनाव और मिर्गी की स्थिति में सुरक्षित दवाओं का उपयोग करें। ओबीजी का इलाज करने और मधुमेह के पर्याप्त नियंत्रण के साथ नियमित प्रसवपूर्व जांच कराएं। समयपूर्व प्रसव, जन्म के समय कम वजन के जोखिम कारकों की पहचान कर समय पर उनका उपाय करें। नियमित रूप से व्यायाम करें पर्याप्त पोषण, फोलेट, ओमेगा 3, विटामिन 1 डीउ, आयरन और कैल्शियम का इस्तेमाल करें। चिंता और तनाव को कम करें। बच्चे को अधिक समय तक स्तनपान कराएं। सैलून, नए घरों, कालीनों, पेंट, यातायात से निकलने वाले धुएं से बचें। जैविक पदार्थ खाने की कोशिश करें। भोजन और पानी को प्लास्टिक के बर्तनों में न रखें। गर्भावस्था में संक्रमणों की पहचान कर समय पर उपचार कराएं।

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