राजपूतो की उत्पत्ति - Origin of Rajputs

 राजपूतो की उत्पत्ति

हर्षवर्धन को मृत्यु के पश्चात से लेकर पारो शताब्दी तक का उत्तर भारत के इतिहास में सामान्यतः 'राजपुत-कार के नाम से जाना है। सातवी आठवी सदी से हमें राजपूत उदय दिखाई देने लगता है तथा बारहवी सदी तक भारत में उनके 36 फूल अत्यन्त प्रसिद्ध हो जाते है। राजपूत बड़े तथा स्वाभिमानी होते थे और साहस, त्याग, देश गुण उनमें कूट- कर भरे हुये थे।


राजपूतों की उत्पत्ति: 'राजपूत' शब्द संस्कृत के 'राजपुत्र विकृत रूप है। राजपुत्र' शब्द का प्रयोग, जो पहले राजगुर अर्थ में किया जाता था. पूर्व मध्यकाल में सैनिक वर्गों तथा टेरे जमोदारी के लिये किया जाने लगा। वस्तुतः आठवी शदी के उपरान 'राजपूत' शब्द शासक वर्ग का पर्याय बन जाता है। इस वर्ग की उत्पत्ति का प्रश्न विद्वानों के बीच अत्यन्त विवाद का विषय रहा है। मुख्यतः इस सम्बन्ध में दो मत दिये जाते है।

1. विदेशी उत्पत्ति का मत 

2. भारतीय उत्पत्ति का मत

विदेशी उत्पत्ति का मत राजपूतों की विदेशी उत्पत्ति के मत का प्रतिपादन सर्वप्रथम कर्तल जेम्स टाह ने किया। उनके अनुसार राजपूत विदेशी सिथियन जाति की सन्तान था। इस मत का आधार साथियन तथा राजपूत जातियों की कुछ सामाजिक तथा धार्मिक प्रथाओं में समानता है जो ड के अनुसार इस प्रकार है। 

1. रहन-सहन तथा वेष-भूषा में समानता। 

2. महार का प्रचलन। 

3. रथाद्वारा युद्ध करना।

 4. यज्ञों का प्रचलन। 

चूंकि उपर्युक्त प्रथाओं का प्रचलन सीथियन तथा राजपूत दोनो ही समाजों में था, अतः इस आधार पर कर्नल टाड राजपूत की सी जाति का वंशज मानते है। इसी मत का समर्थन करते हुए विलियम कु ने प्रतिपादित किया है कि तत्कालीन समाज में कई विदेशी जातियाँ निवास करती थी। ब्राह्मणों का बौद्ध आदि नास्तिक सम्प्रदायों से द्वेष था अतः उन्होंने कुछ विदेशी जातियों की शुद्धि-संस्कार द्वारा पवित्र करके भारतीय वर्ण-व्यवस्था में स्थान प्रदान कर दिया। इन्हीं को 'राजपूत' कहा जाने लगा। भण्हारक ने भी विदेशी उत्पत्ति के मत का समर्थन किया है। उनके अनुसार अम्निकूल के बार राजपूत वंश प्रतिहार, परमार, चौहान जसा सोलको गुर्जर नामक विदेशी जाति से उत्पन्न हुए थे। चौहान तथा गुहिलो जैसे कुछ अंश विदेशी जातियों के पुरोहित थे। उन्होंने आगे बताया है कि गुर्जर प्रतिहार वंश के लोग निश्वयतखजर' नामक जाति की सन्तान ये जो हूणों के साथ भारत में आयो थो

ऐसे प्रतीत होता है कि इन विदेशी जातियों को शुद्धि द्वारा भारतीय समाज में सम्मिलित करने के उद्देश्य से ही पृथ्वीराजरासो में अग्निकुण्ड द्वारा राजपूत को उत्पत्ति बनाई गया है। इस कथा के अनुसार क परशुराम ने चत्रियों का विनाश कर दिया तो शासको का अभाव हो गया तथा मों के अत्याचार बढ़ गये। पृथ्वी जस्त से अतः पृथ्वी के पास का हरण करने के लिये वशिष्ट ने आम् पर्वत पर एक यज्ञ किया जहाँ यज्ञ की अग्निकुड में चार राजपूत कुलोका उद्भव हुआ परमाल, प्रतिहार, चौहान तथा चालुक्य इस कथा



से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि भारतीय वर्णव्यवस्था कारों से विदशी जातियों की शुद्धि द्वारा भारतीय वर्ण-व्यवस्था के अन्तर्गत स्थान प्रदान कर दिया था।


भारतीय उत्पति का मत


राजपूती उत्पत्ति के उपर्युक्त विदेशी सिद्धान्त का विरोध गौरी शंकर, हीराचन्द्र ओझा तथा सी० वी० वैद्य जैसे कुछ भारतीय विद्वानों ने किया है। इनकी सम्मति में राजपूत विशुद्ध भारतीय क्षत्रियों के ही सन्तान थे जिनमें विदेशी रक्त का मिश्रण बिल्कुल नहीं था। इन विद्वानों के प्रमुख तर्क इस प्रकार है-

1. राड ने राजपूत तथा सीथियन जातियों में जिन समान प्रथाओं का संकेत किया है वह कल्पना पर आधारित है। ये अभी प्रथायें भारत की प्राचीन क्षत्रिय जाति में देखी जा सकती है।

2. कुक के निष्कर्ष की पुष्टि किसी भी ऐतिहासिक साक्ष्य से नहीं होती है। यह विचार कोरी कल्पना की उपज है।

3. इस बात का कोईप्रमाण नहीं है कि 'खजर नामक किसी जाति ने कभी भी भारत के ऊपर आक्रमण किया हो। भारतीय अथवा विदेशी किसी भी साक्ष्य से इस जाति का उल्लेख नहीं मिलता है।

4. पृथ्वीराजरासों में वर्णित अग्निकुल की कथा ऐतिहासिक नहीं लगती।

इस कथा का उल्लेख रासो की प्राचीन पाण्डुलिपियों में नही मिलता है। इस प्रकार विदेशी उत्पत्ति का मत कल्पना पर अधिक आधारित है, ठोस तथ्यों पर कर्म। राजपूत शब्द वस्तुतः "राजपुत्र' का ही अपभ्रंश है जिसका भारतीय ग्रन्थों में क्षत्रिय जाति के लिये हुआ है। पाणिनी की अष्टाध्यायी में राजपुत्र शब्द का प्रयोग 'राजन्य अथवा रक्षक के रूप में हुआ है। महाभारत में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र चलाने वाले को 'राजपूत' कहा गया है कल्हण की राजतरंगिणी में शाही परिवारों के उत्तराधिकारी को 'राजपुत्र' की संज्ञा प्रदान की गयी है। 

ऐसा प्रतीत होता है कि तुर्की द्वारा पराजित हो जाने के बाद राजपुत्रों को राजनैतिक प्रतिष्ठा समाप्त हो गयी तथा तुर्की ने अपमानस्वरूप उन्हे राजपूत कहना प्रारम्भ कर दिया। कालान्तर में यही नाम लोकप्रचलित 1 हो गया अतः इन विद्वानो के अनुसार राजपूतों को वैदिक क्षत्रियों की सन्तान मानना चाहिये। परन्तु वे दोनो ही मत आतिवादी है, वस्तु स्थिति तो यह है कि भारतीय वर्ण व्यवस्था में सदा ही विदेशी जातियों के के लिये स्थान दिया गया। यहाँ कोई भी जाति ऐसी नहीं थी जिसमें विदेशी रक्त का मिश्रण न हो। स्वयं आर्य भी यहाँ बाहर से ही आये थे। कई विदेशियों ने भारतीय वंशो में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये। इससे प्रतीत होता है कि प्राचीन वर्ण-व्यवस्था पर्याप्त लचीली थो वैदिक काल में क्षत्रियों का कोई विशिष्ट वर्ण नही था, अपितु उन लोगों को ही क्षत्रिय कहा गया जो वीर तथा साहसी होते थे स्वयं (क्षत्रिय शब्द का अर्थ है, 'क्षत' अर्थात हानि से रक्षा करने वाला।

 अतः यह कहा जा सकता है कि यद्यपि राजपूत क्षत्रियों के वंशज थे तथापि उनमें विदेशी रक्त का मिश्रण अवश्य था वैदिक क्षत्रियों में हो विदेशी जाति के बोरो के मिश्रण से जिस नवीन जाति का आविर्भाव हुआ उसे ही राजपूत कहा गया। आधुनिक सामाजिक आर्थिक इतिहासकारो ने राजपूत वंश की उत्पत्ति के लिये कुछ सामाजिक प्रक्रियाओं को उत्तरदायी माना है। यह एक उल्लेखनीय तथ्य है कि राजस्थान तथा गुजरात में प्रारम्भिक राजपूत वंशो का उदय उस समय हुआ जबकि गुप्त साम्राज्य के पतनोपरान्त विदेशी आक्रमण के कारण अर्थव्यवस्था पतनोन्मुख हो रही थी। ठीक इसी समय देश में सामन्तवादी प्रवृत्तियाँ भी प्रबल हुई। प्राचीन राजपूताना क्षेत्र, जो राजपूत वंशो का प्रमुख केन्द्र था, में सामन्ती संगठन सुदृण था। इसी कारण वहाँ के छोटे-छोटे भूमिधरों अथवा जमींदारो की संज्ञा 'राजपुत्र' (राजपूत) हो गयी। 

इस प्रकार ऐसा प्रतीत होता है। कि राजपूत वंश की उत्पत्ति भारतीय समाज की विविध जातियों तथा जन जातियों के साथ-साथ उन विदेशी आक्रामक जातियों से भी हुई जो भारत मे बस गयी थी और हिन्दू समाज ने जिन्हे आत्ससान् कर लिया था। यही कारण है कि पूर्व, मध्य काल के कई ग्रन्थों में राजपूतो को मिश्रित वर्ण का बताया गया है। इसमें सन्देह नही कि इस वंश में उच्च वर्ण के साथ-साथ निम्नवर्ण के रक्त का भी मिश्रण था।


निष्कर्ष

इंपॉर्टेंट हब में आपका स्वागत है दोस्तों इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको राजपूत की उत्पत्ति से संबंधित पूरी जानकारी दे चुके हैं निश्चित रूप से यह पोस्ट बीए एमए तथा नेट परीक्षा में पूछे जाने वाले क्वेश्चन में से एक। 

FAQ

Q. राजपूत शब्द किस भाषा का विकृत रूप राजपुत्र है ?
A. संस्कृत

Q. राजपूतों के विदेशी उत्पत्ति का प्रतिपादन सर्वप्रथम किसने
किया ?
A. कर्नल टाड

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