मौखरि वंश का संस्थापक कौन था? इससे संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी

 मौखरी वंश

डॉ० सत्यकेतु विद्यालंकार ने लिखा है कि "यह (मौखरि) वंश बहुत प्राचीन था। शुंग काल में भी इसकी सत्ता के प्रमाण मिलते हैं। इस वंश का मूल स्थान मगध था।"


 मौखरि राजा अपने वंश की T उत्पत्ति महाभारत कालीन अश्वपति से मानते थे वे काफी प्राचीन समय से मगध और राजपूताना के सामन्त के रूप में प्रसिद्ध थे ऐसा प्रतीत होता है कि मगध में मौखरि शासन का अन्त गुप्त वंश के राजा चन्द्रगुप्त प्रथम ने लिच्छिव गण की सहायता से किया था, गुप्तों के उत्कर्ष से पहले मौखरि स्वतन्त्र राजा थे, पर गुप्तों के शक्तिशाली हो जाने पर वे सामन्त मात्र रह गये। गुप्तों के काल में भी गया के आस-पास मौखरियों की एक शाखा विद्यमान थी। ये लोग गुप्त सम्राटों के अधीनस्थ सामन्त थे मौखरियों की इस गया वाली शाखा के तीन राजाओं यज्ञवर्मा, शार्दुल वर्मा और अनन्त वर्मा के नाम बराबर और नागर्जुनी पहाड़ियों की गुफाओं में उत्कीर्ण लेखों में विद्यमान हैं। छठी शताब्दी में मौखरियों ने उत्तर-पूर्वी भारत में पुनः अपना प्रभुत्व स्थापित किया।

परन्तु मौखरियों की एक अन्य शाखा कन्नौज में शासन करने लगी और यह इतिहास में अधिक प्रसिद्ध हुई। कन्नौज में मौखरि लोग गुप्त सम्राटों के प्रान्तीय शासकों के रूप में नियुक्त होकर आये थे वे गुप्त सम्राटों के पूरी तरह अधीन थे।


मौखरि वंश का इतिहास- इस वंश के पहले दो राजा हरिवर्मा और आदित्यवर्मा थे। वे दोनों ही स्वतंत्र राजा नहीं थे, अपितु गुप्त सम्राटों के सामन्त थे । आदित्यवर्मा का विवाह गुप्त वंश की एक राजकुमारी हर्ष गुप्ता से हुआ था, इस कारण उसका प्रभाव बहुत बढ़ गया था। हरहा अभिलेख में आदित्य वर्मा द्वारा किये गये यज्ञों का भी उल्लेख है।

स्वतन्त्र राजा ईश्वरवर्मा कन्नौज के मौखरि वंश का तीसरा राजा ईश्वरवर्मा था। वह आदित्यवर्मा का पुत्र था। उसने सन् 524 से 550 ई0 तक शासन किया। उस समय गुप्तों का साम्राज्य निर्बल हो चला था, उसी समय हूणों का आक्रमण हुआ। हूण राजा मिहिर गुल ने उत्तर भारत के विशाल प्रदेश को रौंद डाला। हूणों को पराजित करने के लिए मालवा के यशोवर्मा ने कई राजाओं को संगठित किया। उनमें कन्नौज का मौखरि राजा ईश्वरवर्मा भी एक था, उसने हूणों के विरूद्ध हुए युद्ध में वीरतापूर्वक भाग लिया, हूणों की पराजय हुई।


हूणों की पराजय से यशोवर्मा का महत्व बहुत बढ़ गया और गुप्त साम्राज्य का महत्व उसी अनुपात में कम हो गया। यदि यशोवर्मा देर तक जीवित रहा तो शायद मौखरि लोग उसी के अधीनस्थ सामन्त बनकर रहते। पर यशोवर्मा की शीघ्र ही मृत्यु हो गई और उसका कोई योग्य उत्तराधिकारी न होने से कुछ अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गयी। इसका लाभ उठाकर ईश्वरवर्मा ने स्वयं को स्वतन्त्र महाराज घोषित कर दिया। गुप्त सम्राटों में शक्ति शेष नहीं थी कि वे उसे फिर अपने अधीन कर सकते। कुछ विद्वानों का मत है कि असीरगढ़ के मुद्रा लेख में ईश्वरवर्मा की उपाधि केवल 'महाराज' दी गई है, इससे वह सामन्त शासक जान पड़ता है, स्वतंत्र शासक नहीं।

महाराजाधिराज ईशानव ईश्वरवर्मा की मृत्यु के बाद सन • 550 ईo में उसका पुत्र ईशानवर्मा राजा बना यह महत्वाकांक्षी पुरुष था। उसने अपनी शक्ति को और बढ़ाया, पास-पड़ोस के क्षेत्र पर अधिकार करके उसने 'महाराजाधिराज' की उपाधि धारण की। इसे गुप्त नरेश कुमारगुप्त तृतीय ने बुरा माना। उसने ईशानवमी पर चढ़ाई कर दी। दोनों में अनेक युद्ध हुए पर उसका कोई निर्णायक परिणाम नहीं निकला। ईशानवर्मा ने अपना राज्य काफी विस्तृत कर लिया, परन्तु वह गुप्त नरेश कुमारगुप्त तृतीय को हरा नहीं सका। सम्भवतः कुमारगुप्त ने ही प्रयाग तक से मौखरि प्रदेश पर अधिकार कर लिया था। हरा उत्कीर्ण लेख ईशानवर्मा के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख हरहा उत्कीर्ण लेख में है। इसे संवत 611 सन् 544 ई0 में ईशान वर्मा के पुत्र सूर्यवर्मा ने एक शिव मन्दिर का जीर्णोर करते समय लिखा था। इसमें ईशान की तनी विजयों का वर्णन है-

 1. विशाल गज सेना वाले आन्ध्रों पर विजय 

2. असंख्य अश्वसेना वाले शूलियों पर विजय 

3, समुद्र तटवासी गौड़ों पर विजय।

शूलिक कलिंग के निवासी थे। इस प्रकार ईशानवर्मा ने आन्ध्र कलिंग और बंगाल को जीता था ईशानवर्मा ने सन् 576 ई० तक राज्य किया 

शर्ववर्मा ईशानवर्मा के बाद शर्ववर्मा द्धसर्ववर्माऋ राजा बना। उसकी माता का नाम लक्ष्मी देवी था। ईशानवर्मा का एक और पुत्र सूर्यवर्मा भी था परन्तु वह राजा नहीं बना, सर्ववर्मा वीर और पराक्रमी राजा था। उसने कुमारगुप्त तृतीय के उत्तराधिकारी दामोदर गुप्त पर आक्रमण किया। इस युद्ध में गुप्त नरेश दामोदर गुप्त की हार हुई और वह मारा गया। इससे कुछ समय के लिए मगध पर भी मौखरियों का अधिकार हो गया। उनके राज्य की पूर्वी सीमा अब सोन नदी तक पहुंच गई। डॉ० सत्यकेतु विद्यालंकार ने काह है कि "उत्तरी भारत की प्रधान राजनीति शक्ति अब गुप्तों के हाथ से निकल कर मौखरि वंश के पासआ गयी थी।"

 शर्ववर्मा का शासन काल मौखरि वंश की चरम उन्नति का काल था। आवन्ति वर्मा शर्मवर्मा के बाद अवन्तिवर्मा कन्नौज का राजा बना। उसकी मुद्राएं ईशानवर्मा और शर्मवमों की मुदाओं के साथ पाई गई हैं। कुछ विद्वान उसे प्रसि) नाटककार विशाखदत्त का आश्रयदाता मानते हैं।

ग्रहवां मौरियों का अन्तिम नरेश अवन्ति वर्मा का ज्येष्ठ पुत्र ग्रहवर्मा ग्रहवर्मा का विवाह स्थानेश्वर थानेश्वर के पुष्यभूतिवंशी राजा प्रभाकर वर्धन की पुत्री राज्यश्री से हुआ था। यह राज्यश्री सम्राट हर्षवर्धन की बहिन थी। इस विवाह से पहले तक पुष्यभूति वंश या वर्धन के साथ गुप्त वंश के सम्बन्ध मित्रतापूर्ण थे, पर अब उनमें कटुता आ गई। गुप्त नरेश ने गौड़ बंगाल के राजा शशांक रे मित्रता कर ली। शशांक ने मालवा के राजा देवगुप्त को कन्नौज पर आक्रमण करने के लिए उकसाया। इस बद में ग्रहवर्मा मारा गया। राज्यश्री पकड़ी गई। यह समाचार पाकर राज्यश्री का भाई राज्यवर्धन सेना लेकर कन्नौज पहुंचा। 

निष्कर्ष

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FAQ

Q.मौखरि वंश का संस्थापक कौन था?

A. कन्‍नौज का प्रथम मौखरि वंश का सामन्त हरिवर्मा था।

Q.मौखरी वंश का अंतिम शासक कौन था?

A. सुचंद्रवर्मा मौखरि वंश का अंतिम शासक था।

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