प्रचार की मनोवैज्ञानिक प्रविधियां। PSYCHOLOGICAL TECHNIQUES OF PROPAGANDA
प्रचार के लिए अनेक मनोवैज्ञानिक प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है। ब्रूम एवं सेल्जानिक ने अमेरिका को प्रचार विश्लेषण संस्था (Institute for Propaganda Analysis) द्वारा अपनायी गयी गतिविधियों का इस प्रकार से उल्लेख किया है
(1) नाम देना (Name Calling)—इस विधि के अन्तर्गत प्रचारक अपने तथा अपने कार्यक्रम को अच्छे अच्छे नाम देता है तथा अपने विरोधी व उसके कार्यक्रम को बुरे नामों से सम्बोधित करता है। अच्छे नाम की तुलना में बुरा नाम शीघ्र फैलता है। राजनीतिक दल एक-दूसरे के लिए साप्रदायिक प्रतिक्रियावादी, ताना दकियानूस, शोषक वर्ग के पक्षपाती आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं और उन्हें बदनाम करते हैं। तथा अपने लिए समाजवादी, प्रजातन्त्र में विश्वास करने वाले समाज सेवी, स्वतन्त्रता एवं समानता के रक्षक, दों का प्रयोग करते हैं कि लोग पूजीपतियों के लिए शोषणकर्ता एवं खटमल जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं।
(2) प्रमाण-पत्र विधि (Testimonial Device)—इस विधि के अनुसार किसी वस्तु की अच्छाई का प्रमाण-पत्र प्रचारक स्वयं नहीं देता है, वरन् सम्मानित एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति के द्वारा दिया जाता है। अतः लोग उसके कथन पर शीघ्र ही विश्वास कर लेते हैं, जैसे माला सिन्हा कहती है कि एटलस साइकिल 'मेरी कठिनाई का साथी है। धर्मेन्द्र जीप सेल एवं टॉर्च को अपने अंधेरे का साथी मानता है या गावस्कर लाइफबॉय से अपने स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं, जीनत अमान की सुन्दरता का राज रेक्सोना साबुन है और खांसी तथा खराब होने पर येशूदास विक्स की गोलियों का प्रयोग करता है, आदि। इस प्रकार प्रतिष्ठित व्यक्तियों की प्रमाणिकता को अन्य व्यक्ति स्वीकार कर लेते हैं और वे भी उसका प्रयोग करने लगते हैं।
(3) आकर्षण सामान्यीकरण (The Glittering Generality Device)—इस विधि में प्रचारक अपने विचारों को प्रभावपूर्ण तथा लड़कीले फड़कीले शब्दों में प्रस्तुत करता है जिससे लोग उसके भुलावे में आ जाते हैं। वे सोचते हैं कि उनके भले के लिए ही सब कुछ किया जा रहा है। प्रचारक अपने को समाजसेवी, न्यायलय, ईमानदार लोगों की भलाई चाहने वाला बताता है और दूसरों की बुराई करता है; जैसे लोकदल अपने को किसानों एवं ग्रामीणों का हितैषी बताता है, जनसंधी अपने को हिन्दुओं का रक्षक तथा कांग्रेसी अपने को पिछड़े वर्गों एवं अल्पसंख्यकों का रक्षक बताते हैं। इसी प्रकार से राजनीतिक दल एक दूसरे पर साप्रदायिक, प्रतिक्रियावादी, शोषक वर्ग के पक्षपाती, आदि होने का आरोप लगाते हैं।
(4) ठोकायी विधि (Plain Folk Device ) — इस विधि के अन्तर्गत प्रचारक यह बताने का प्रयत्न करता है कि वह जो भी कर रहा है सामान्य जनता की भलाई के लिए कर रहा है। इसके लिए वह ऐसे तरीके काम में लेता है जो जन भावना के अनुकूल हो। वह लोगों को यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न करता है कि वह भी उन्हीं में से एक है और समाज का हित उसके हित से बढ़कर है। उदाहरणार्थ, प्रसिद्धि पाने हेतु नेता लोग गन्दी बस्तियों में सफाई करने जाते हैं, उनकी मांगों के समर्थन में भूख हड़ताल कर बैठते हैं, आदिवासियों की पोशाक पहनकर उनके साथ नृत्य करते हैं या फोटो खिंचवाते हैं, हरिजनों के साथ बैठकर भोजन करते हैं तथा मजदूरों के साथ श्रम करते हैं।
(5) सार्वभौमिक विधि (Band Wagan Device ) — इस विधि में प्रचारक लोगों में यह विश्वास पैदा करने का प्रयत्न करता है कि वह जो कुछ कह रहा है वह उसका स्वयं का ही नहीं वरन् बहुमत का विचार है। जैसे वह कहता है दुनिया में लाखों लोग कॉलगेट टूथपेस्ट एवं टूथब्रश का उपयोग करते हैं फिर आप क्यों नहीं? घर-घर में सिलाई ऊषा मशीन ने चलाई, आदि। इस विधि के द्वारा लोगों में भीड़ मनोवृत्ति पैदा ऑपोर्ट इसे सार्वभौमिकता का भ्रम (The illusion of universality) कहते हैं। की जाती है और लोग प्रचारक के भुलावे में आकर वैसा ही करने लगते हैं जैसा वह चाहता है। इसलिए ही है। वह वास्तविकता को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करता है जिससे कि हर कोई असली बात को समझ नहीं
(6) छल-कपट विधि (Car Stacking Device ) —— इस विधि में प्रचारक झूठ एवं धोखे का सहारा लेता पाता और उसके धोखे में आ जाते हैं; जैसे किसी वस्तु पर Made in England के स्थान पर Made as