मुगल साम्राज्य का द्वितीय चरण (1556-1707)
अकबर (1556-1605)
पानीपत की दूसरी लड़ाई अकबर ने अपने पिता की मृत्यु की खबर पंजाब में अफगानों के खिलाफ युद्ध करते हुए सुनी। बैरम खान ने तुरंत अकबर का राज्याभिषेक करवा दिया किंतु उसकी स्थिति अभी काफी नाजुक थी। अफगानों में मुगलों से आगरा-बयाना क्षेत्र छीन लिया। दिल्ली पर हेमू का थानी को दूसरी लड़ाई (1556) में हेमू की जीत होने ही वाली थी कि एक तीर हेमू की आंख में लगा और उसके तुरन्त बाद ही हेमू की सेना भाग खड़ी हुई।
बैरम खान का राज्यकाल (राजप्रतिनिधि) जाने-माने ईरानी विद्वान अब्दुल लतीफ को अकबर का शिक्षक नियुक्त करने के बाद बैरम खान स्वयं अकबर के जोते हुए क्षेत्र को उसके वकील के रूप में गठित करने में लग गया। उसके बढ़ते प्रभाव के कारण अकबर के कुछ संबंधी, जिन्हें 'अतकाह खाल' कहते थे, क्षुब्ध हो गए। 1560 में अकबर मात्र 18 वर्ष का था, किंतु स्वतंत्र रूप से शासन करना चाहता था। इसी साल अकबर की एक सौतेली मामाहम अनगा ने उसे आगरा से दिल्ली भेज दिया। वहां से अकबर ने बैरम को हज के लिए छुट्टी लेकर मक्का जाने का लिखित निर्देश भेजा। दरबार की राजनीति के दबाव में बैरम ने विद्रोह कर दिया। अंत में जब उसने अकबर के आगे समर्पण किया तब अकबर ने उसे पुनः मक्का जाने का हुक्म दिया। 1561 में मक्का जाने के रास्ते में गुजरात के पाटन में एक अफगान ने बैरम की हत्या कर दी। उसका चार साल का बेटा अब्दुर्र रहीम खान-ए-खाना दरबार में भेज दिया गया।
अकबर की विजय अकबर के विस्तार की आकांक्षाएं दूसरे साम्राज्यवादियों जैसी ही थीं। उसने उत्तर भारत में आगरा से गुजरात और फिर आगरा से बंगाल और आसाम की सीमा तक के क्षेत्र को अपने कब्जे में कर लिया। उसके बाद उसने उत्तर पश्चिमी सीमाओं को सुदृढ़ किया और फिर दक्कन की और बढ़ा। उसने बाज बहादुर से मालवा जीता (1561) और फिर गढ़कटंगा (रानी दुर्गावती और उनका नबालिग पुत्र वीर नारायण मुगलों से युद्ध करते हुए गोवा (1564), गुजरात (1572-3) फतेहपुर सीकरी में बुलंद दरवाजा इसी जीत की खुशी में बनवाया था), बिहार और बंगाल (1574-76) (1591) कश्मीर और बलूचिस्तान (1586). सिंध (1591), उड़ीसा (1592), कांधार (1995), खानदेश और अहमदनगर के कुछ क्षेत्र (1993-1601) चांद बीबी से जीते।
1585 में अकबर उत्तर-पश्चिम की तरफ महत्वाकांक्षी अब्दुल्लाह खान उज्बेक के काबुल जीतने की कोशिश को नाकाम करने के लिए बढ़ा और वहाँ 1598 में अब्दुल्लाह की मृत्यु तक रुका। इस क्षेत्र में अपने 14 वर्षों के प्रवास में अकबर ने अपने हसन अब्दल के पड़ाव से तीन अभियान भेजे। एक कश्मीर और दूसरा बलूचिस्तान गया। तीसरा अफगानों की जनजाति और अफगानों के एक धार्मिक आंदोलन रोशनिया के दमन के लिए गया। अकबर के रोशनिया और जनजाति के लोगों के खिलाफ ये प्रारंभिक अभियान असफल रहे। 1586 में उसका विश्वासी मित्र बीरबल (एक ब्राह्मण) यूसुफजाइयों द्वारा मारा गया। कश्मीर अभियान के सेना नायकों में से एक राजा भगवान दास, कश्मीर के अंतिम शासक यूसुफ खान को समर्पण करवाने में कामयाब हो गया। किंतु अकबर उसकी शर्तों को मानने के लिए तैयार नहीं था। उसने राजा और उसके बेटे को बंदी बना लिया। अकबर द्वारा भेजी गई सेना ने 1586 में कश्मीर पर कब्जा कर लिया और उसे काबुल राज्य की एक सरकार घोषित कर दिया गया। बलूचिस्तान भेजी गई सेना ने भी बलूचियों से समर्पण करवा लिया और 1590-1 में सिंध भी फतह कर लिया गया।
अकबर के शासन काल के शुरू में ही ईरान के शाह ने कंधार पर कब्जा कर लिया था। अतः अकबर ने अपने मशहूर सेनानायक अब्दुर रहीम खान-ए-खाना के नेतृत्व में वहां एक सेना भेजी। कंधार के राज्यपाल ने आत्म-समर्पण कर दिया और वह मुगल साम्राज्य का एक हिस्सा बन गया। अब मुगल साम्राज्य की सीमाएं सिंध, बलूचिस्तान, काबुल और कश्मीर से लेकर हिंदुकुश तक थीं और समय की सबसे विस्तृत और संगठित सुरक्षा सीमाएं थीं। ऐसी सुदृढ़ सीमाएं अब तक भारत ने नहीं देखी थीं। किसी और भारतीय शासक ने ऐसी सीमाओं पर नियंत्रण नहीं किया था जैसा कि अकबर ने। अहमदनगर, चांद बीबी और दक्कन ने अभी भी वीरता से अकबर का प्रतिरोध किया।
राजपूत नीति आंबेर के राजा भारमल कछवाहा ने अपनी सबसे बड़ी बेटी से अकबर का विवाह करवाया। राजा भगवान दास (राजा भारमल का उत्तराधिकारी) और मान सिंह (राजा भारमल का गोद लिया हुआ पुत्र) को मुगलों के उच्च पदों पर आसीन किया गया।
एक के बाद एक सारे राजपूत राज्यों ने अकबर के आगे समर्पण कर दिया। किंतु मेवाड़ के राणाओं ने कई हारों के बावजूद अभी भी मुगलों के आगे घुटने नहीं टेके थे। विशेषकर हल्दी घाटी की लड़ाई (1576) में राणा प्रताप को मान सिंह के नेतृत्व वाली मुगल सेना से बुरी तरह हारना पड़ा था।