मेरे और मेरे होने के बीच में

 मेरे और मेरे होने के बीच में

जो कुछ भी मेरे और मेरे होने के बीच में आ रहा है, उसे मैं ज़िंदगी से एक एक कर के हटाता जा रहा हूँ।

सोचता हूँ कि ऐसे क्या मेरी ज़िंदगी में कुछ बचेगा भी। डर भी लगता है कभी कभी, आगे के बारे में कि क्या मुझे कुछ सोचना नहीं चाहिए? लेकिन ये सब जानकर और डर को महसूस करते हुए भी हटाने जा रहा हूँ वो सब कुछ। ज़िंदगी कब तक ऐसे ही चलती रहे पता नहीं है। लेकिन मैं ऐसे ही चलना चाहता हूँ।

कितनी ही बार ऐसे चलने और न चलने के बीच में खुद को फँस हुआ पाता हूँ। ठीक ठीक समझ ही नहीं पाता कि मैं क्या चाहता है लेकिन कोई है जो खींच ही लेता है हर बार मुझे अपनी तरफ... ठीक पता भी नहीं कर पाता कि कौन है वो, जो हर बार खींच ही लेता है।

एक अजीब सा आकर्षण है उसमें, लेकिन ये मैं ठीक से कैसे क सकता हूँ? उसका चेहरा तो पता भी नहीं मुझे ठीक ठीक, बस एक धुँधली सी काया दिखती है। जो मेरे आगे आगे चल रही होती है। कह और पैर पड़ने को होते हैं, तो वो एक झोंके की तरह आती है और फि उसी तरफ धकेल देती है।

बस मैं मंत्रमुग्ध होकर चल रहा हूँ उसके पीछे पीछे, बिना ये सोच समझे कि आगे क्या होगा? बस चल रहा हूँ... और मेरा होना क्या है यह भी ठीक ठीक नहीं पता। बस चल रहा हूँ...


फितरत है उल्टा चलना

आज सुबह पार्क में टहलते वक़्त अपने आप ही पार्क का उल्टा चक्कर काटने लगा। कुछ कदम चलते ही पैर ठिठकने को हुआ। अटपटा सा लगा कि अरे आज तो वैसा नहीं है जैसा रोज होता है, आज कुछ अलग है। ये उल्टा चक्कर काटने में इतनी असहजता क्यूँ हो रही है? लेकिन मैं चलता रहा रुका नहीं। उसी दिशा में। ये कितनी सामान्य बात है, पार्क का उल्टा चक्कर लगाना। फिर भी मैं असहज हुआ। तब सोचो समाज के बने बनाये पुराने ढर्रे को तोड़कर उसके विपरीत दिशा में चलना कितना कठिन और समाज की रूढ़िवादी सोच को कितना चोट पहुँचाने वाला होगा।

लेकिन जब तक बने बनाये पुराने ढर्रे के विपरीत चला न जाये तब तक नई दिशा, नए रूप और नए रंग का पता कैसे चलेगा?

पुरानी तरफ़ ही चलते रहा तो बासी नहीं हो जाऊँगा क्या? ये दुनिया तो चाहती है बासी रहना और चाहती है तुमको बासी रखना ताकी तुम कोई ख़तरा न पैदा करो, पर मेरी तो फितरत है उल्टा चलना.....


जब सभी गहरी खाई में गिर रहे होते हैं एक साथ, तो कोई किसी का सहारा नहीं बन सकता, क्योंकि सब लोग गिर रहे हैं एक साथ। सब एक साथ डर रहे होते हैं, मरने की तरफ बढ़ रहे होते हैं, लेकिन कुछ कर नहीं सकते, क्योंकि सभी गिर रहे हैं एक साथ, उस गहरी खाई में जिसमें लाखों समा गए लाखों समा जाएँगे, लाखों अभी गिर रहे हैं। उसमें किसी को हाथ भी बढ़ा दो तो क्या? जाओगे तो उस खाई में

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