इतिहास एवं परंपरा
योग वस्तुतः कोई नई खोजों का परिणाम नहीं वरन यह अत्यंत प्राचीन विधा है जिसे योग साधना, मोक्ष साधना या जीवन जीने की कला भी कहते हैं। हमारे ऋषि मुनि तथा महान साधकगण इसका अभ्यास वैदिक काल से ही करते आ रहे हैं। अब प्रश्न उठता है कि योग के आदिवक्ता या उपदेष्टा कौन है? क्या महर्षि पतंजलि को योग का आदिवक्ता या उपदेष्टा कहा जा सकता है? यद्यपि यह निर्विवाद है कि वर्तमान में महर्षि पतंजलिकृत योगदर्शन ही योग का प्राचीन तथा प्रामाणिक ग्रंथ है। लेकिन फिर भी महर्षि पतंजलि योग के आदिवक्ता या उपदेष्टा नहीं यह सत्य है, महर्षि पतंजलि ने आचार्य परंपरा से प्राप्त योग विद्या को व्यवस्थित कर योग सूत्रों की रचना कर योग विद्या को क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत किया, योग के उपदेष्टा या आदिवक्ता कौन है? इसका उत्तर दो ऋषि गत द्वारा उद्धृत करते हैं।
याज्ञवल्क्य के अनुसार हिरण्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्यः पुरातन प्राचीन एवं प्रमाणिक ग्रंथों में हिरण्यगर्भ को योग का आदिवक्ता माना गया है। (योग के आदिवक्ता या उपदेष्टा आचार्य हिरण्यगर्भ है, उनसे प्राचीन कोई नहीं है। महाभारतकार व्यास ऋषि के अनुसार-
सांख्यस्य वक्ता कपिल परमर्षि च उच्यते ।
हिरण्यगर्भ योगस्य वक्ता नान्य परातन ।।
सांख्य शास्त्र के वक्ता परमर्षि मुनि है और योगशास्त्र के वक्ता आचार्य हिरण्यगर्भ हैं। हिरण्यगर्भ से प्राचीन योग का वक्ता कोई नहीं है। हिरण्यगर्भ का अर्थ है- स्वर्ण बीज (सोने के अण्डे से निकला हुआ चार मुख वाला ब्रह्मा) वह सोने के अण्डे से निकला था इसलिए उसका नाम हिरण्यगर्भ पड़ा है।
उपनिषदों में योग विज्ञान को ब्रह्म विद्या, आत्म विद्या तथा उपनिषदों में उनके स्थान पर कहा गया है कि योग ही एकमात्र ऐसी विद्या है, जिसका क्रियात्मक ज्ञान हो जाने के बाद मनुष्य के लिए कुछ भी अज्ञात नहीं रह जाता अर्थात् वह सब कुछ जान लेता है।
"ब्रह्मा देवानां प्रथमः सम्बभूव विश्वस्थकर्ता भुवनस्य गोप्ता ।
देवताओं में सर्वप्रथम ब्रह्मा जी हुए हैं, जो कि विश्व के कर्ता और भुवन के गोप्ता हैं। अतः सृष्टि के प्राचीनतम् देव होने के कारण तथा चारों वेदों के ज्ञाता होने के कारण हिरण्यगर्भ ब्रह्मा जी योग विद्या के आदिवक्ता उपदेष्टा हैं। निष्कर्ष रूप में वह कहा जा सकता है कि प्रजापति ब्रह्मा ही योग के आदिवक्ता या उपदेष्टा है, अन्य कोई नहीं।