सुरक्षित समाज के लिए प्रतिबद्ध
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने अपने पहले मुख्यमंत्रित्व काल में यूं तो कई चौंकाने वाले निर्णयों से राज काज का ऐसा सबसे अलग माडल पेश किया है जिसके चर्चे आज सारे देश में हो रहे हैं। वो निर्णय चाहे प्रजा की मूलभूत आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा, मकान से जुड़ा हो चाहे आस्था, रोजी रोजगार, खेती किसानी, व्यापार, कारोबार और पढ़ाई, दवाई से, योगी ने हर काम यथाशक्ति मनोयोग से किया है। पर इस सबके ऊपर है भयमुक्त वातावरण का सृजन और जिसके लिये देश का यह सबसे बड़ा प्रदेश अरसे से तरसता रहा है।
आज ही नहीं सैंकड़ों वर्षों से भारतीय संत, महात्माओं और विचारकों ने राजा का प्रथम दायित्व दुष्टों से प्रजा की रक्षा बताया है गीतोपदेश में कहा गया है कि राजा का उत्तरदायित्व - 'परित्राणाय साधूनाम, विनाशाय च दुष्कृताम' होना चाहिये। इसके भी पहले पौराणिक उदाहरण का सहारा लें तो द्वापर युग से पहले त्रेता युग की कथा सामने है। वो ऐसे कि उत्तर प्रदेश में पांच सदियों के बाद राम मंदिर की मुक्ति एक योगी राजा के शासन काल में ही हुई और राम मंदिर की आस्था से ही जुड़ा है राम राज राम राज के बारे में संत तुलसीदास कह गये हैं-'दैहिक, दैविक, भौतिक तापा राम राज नहिं काहुहि व्यापा' तो साथ में यह भी लिखा कि 'जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी सो नृप अवसि नरक अधिकारी' अर्थात करोड़ों की आस्था के सम्बल राम ने चौदह वर्षों तक वन वन भटक कर दुष्टों के विनाश का प्रण इसीलिये लिया था ताकि पापियों के पाप से किसी प्रजा जन को संताप न हो, दुख न हो।
महाभारत काल में महात्मा विदुर ने कहा-'य एव यत्नः क्रियते परराष्ट्र विमर्दने । स एव यत्नः कर्तव्यः T, स्वराष्ट्रपरिपालने।।' अर्थात राजा का कर्तव्य है कि जैसे प्रयास वह शत्रु के राज्य को नष्ट करने में करता है यानी भरसक प्रयास, ऐड़ी से चोटी का जोर लगा कर, बिना कोई चूक किये, पूर्ण मनोयोग से और किसी भी कीमत वाले अंदाज T में, वैसे ही प्रयत्न वह अपने राज्य तथा प्रजा की रक्षा के लिये उन्हें सुरक्षा, अभय, सुविधाएं, व्यवस्था व सुख शांति आदि प्रदान करने के लिये भी करे। इसे आज के परिप्रेक्ष्य में उत्तर 1 प्रदेश पर लागू करके देखें तो अवश्य ऐसा प्रतीत होगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने कार्यकाल में उपरोक्त नीति वाक्यों को उतारने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। इसे शर्मनाक नहीं तो और क्या कहा जायेगा कि देश को सात प्रधानमंत्री देने वाले और गंगा, यमुना, घाघरा, गोमती आदि जैसी सदानीरा पावन नदियों से सिंचित उपजाऊ प्रदेश को कभी बीमार कहे जाने वाले बिहार से भी गया बीता कहा जाये। उनतालीस सालों तक सवा सौ साल पुराने राष्ट्रीय दल और फिर करीब उनतीस सालों तक क्षेत्रीय दलों के साये में पनपे प्रदेश का यह हाल हो गया कि यहां की प्रतिभा पलायन का मुंह ताकने लगी। उद्योग धंधे चौपट होने लगे। भ्रष्टाचार, अनैतिकता, अशांति, अन्याय तथा व्यभिचार का बोलबाला हो गया। रिश्वत, ठगी, लूट, अंधा लाभांश,मिलावट, घोटाले अधर्मपूर्ण अर्थ कमाने का जरिया बन गये। यानी जिसकी लाठी उसकी भैंस का सिद्धांत यहां सिर चढ़ कर बोलने लगा। जाहिर है प्रदेश महाविनाश की ओर बढ़ चला था।
वही हुआ जिसकी चेतावनी कभी महात्मा विदुर ने दी थी । 'यः प्रमाणं न जानाति स्थाने वृद्धौ तथा क्षये। कोशे जनपदे दंडे न स राज्येवतिष्ठते।।' अर्थात जो राजा अपनी स्थिति सामर्थ्य वास्तविकता, वृद्धि, नाश, कोष, देश तथा प्रजा व सेना या किस अपराधी को कैसा दंड देना है आदि के संबंध में नहीं जानता वह राज्य पर स्थिर नहीं रह पाता। और 'यस्वेतानि प्रमाणानि यथोक्तान्यनुपश्यति। युक्तो धर्मार्थयोर्ज्ञाने स राज्यमधिगच्छति ।।' अर्थात जो राजा ऊपर कहे गये प्रमाणों को भली भांति जानता है तथा धर्म एवं अर्थ के ज्ञान का भी स्वामी होता है, वही राज्य को प्राप्त करता है अथवा चिर काल तक स्थायी रूप से राजा बना रहता है।
इस उक्ति का उदाहरण योगी ने उस समय पहली बार प्रस्तुत किया जब राजधानी लखनऊ में प्रदर्शनकारियों ने बड़े स्तर पर सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करके हिंसा का वातावरण बनाने का प्रयास किया था। तब मुख्यमंत्री ने एक ऐसा महत्वपूर्ण निर्णय लिया जो पूरे देश में आम जन के बीच चर्चा का विषय बन गया। उन्होंने सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई प्रदर्शनकारियों से करने का आदेश दे दिया। इससे पहले ऐसा प्रयोग किसी राज्य ने नहीं किया था। तब बड़ी हाय तौबा मची इसे प्रदर्शन के अधिकार को चुनौती माना गया। पर किसी की चली इसलिये नहीं क्योंकि बेशक शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना राजनेताओं और संगठनों का संवैधानिक अधिकार है लेकिन उस सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं जो आम जनता से मिले कर की बुनियाद पर जनता के लिये खड़ी की गयी हो। इसका परिणाम ये हुआ कि फिर आगे से किसी ने ऐसा दुस्साहस नहीं किया ।
इसके बाद बाहुबल और धनबल के सहारे मनबढ़ आपराधिक गतिविधियों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दृष्टि गयी। फिर चाहे वो कितना भी शक्तिशाली रहा उसे बख्शा नहीं गया। शक्ति की नींव पर खड़ी इमारतों को ध्वस्त करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी गयी। शहर हों या T गांव वहां के अवैध कब्जों की शामत आ गयी । भूमाफिया, शराब माफिया, खनन माफिया, वन माफिया, चिकित्सा माफिया, शिक्षा माफिया और न जाने कैसे कैसे ट्रांसफर पोस्टिंग माफिया, भर्ती माफिया इत्यादि की ऐसी नकेल कसी कि या तो उन्होंने अपने काले कारनामे खूंटी पर टांग दिये, या प्रदेश छोड़ दूसरे प्रदेशों में आश्रय तलाशने लगे या खुद गले में तख्ती टांग कर जेलों के सींखचों के हवाले हो गये। अपराधी की न जाति देखी न धर्म । 'शठे शाठ्यम समाचरेत' की नीति से काम लिया गया।