सुमेरियनों के धर्म एवं दर्शन पर प्रकाश
सुमेरियन धर्म के विभिन्न पक्षों के अनुशीलन से विदित होता है कि इनका धर्म आदर्श एवं उदात्त नहीं था लेकिन जनता में इसका विशिष्ट स्थान था। मन्दिर जो धर्म केन्द्र हुआ करते थे राजनीति एवं अर्थव्यवस्था के मुख्य नियंता थे। यहाँ के शासक एक प्रकार से देवता प्रतिनिधि समझे जाते थे।
काल विशेष में एंसियों ने यहाँ अपना काफी प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। वास्तव में प्राचीन मिस्रियों के समान सुमेरियन भी हर घटना एवं प्राकृतिक परिवर्तनों का कारण दैवी शक्ति की प्रेरणा मानते थे। प्रत्येक जाति, व्यक्ति तथा स्थान के अपने-अपने देवता थे और उनके लिए उपास्य एवं श्रद्धा के विषय थे। मिसियों के समान सुमेरियन धर्म भी कर्मकाण्डपरक था। सुमेरियन धर्म लौकिक धर्म था परलोक को इसमें कोई मान्यता नहीं थी। इस प्रकार नैतिकता का भी इसमें कोई महत्व नहीं था किन्तु उन्होंने आख्यानों की कल्पना कर ली थी।
सुमेरियन देवी-देवता :- सुमेरिन धर्म बहुदेववादी था क्योंकि इस धर्म में अनेक देवी देवताओं की कल्पना की गयी थी। इनका विवरण इस प्रकार है -
अन (आकाशदेव) : यह लगभग निश्चित प्रतीत होता है कि सुमेरियन आकाशदेव के अन कहते थे जिसे बैबिलोनियन काल में अनु कहा जाता था।
एनलिल (वायुदेव) :- एनलिल को अनेक अभिलेखों में देवपिता पृथिवी और आकाश का स्वामी और सभी देशों का स्वामी कहा गया है। सुमेरियनों की यह मान्यता थी कि एनलिल समस्त सृष्टि को अपने नियमों से संचालित करता है।
एनकी (जलदेवता) - सुमेरियनों का तृतीय प्रमुख देवता एनकी था। प्रारम्भ में यह पृथ्वीदेव था और इसे उनका पुत्र माना गया या लेकिन कालान्तर में इस देवता की कलाना ज्ञान के स्रोत-रूप में की गयी। आगे चलकर इसकी प्रतिष्ठा एनलिल के मंत्री एवं जल देवता के रूप में हो गयी। इसे जल स्रोतों का अधिपति माना गया। एनकी का प्रतीक चालीस का अंक था ।
निन्माह (पृथिवी देवी) :- सुमेरियन देव मण्डल का चौथा प्रमुख देव निन्माह है। कभी-कभी इसकों एनकी से भी अधिक महत्वपूर्ण स्थान दे दिया जाता था। पृथिवी का प्राचीनतम नाम की था। उस रूप में देवजननी' और अन को देवपिता माना जाता था।
अन्य देवता :- इन देवताओं के अतिरिक्त सुमेरियन देवसमूह के अन्य सैकड़ों देवता थे जिनकी उपासना समस्त सुमेर में विविध रूपों में होती थी। इनमें नीति और व्यवहार के देवता इया सूर्य देवता उतू और प्रेम की देवी इनन्ना (inanna) प्रमुख है। इया का एरेक में स्थित मन्दिर समस्त सुमेर में विख्यात था। वह विपति के समय मनुष्य को शुभ और विवेकपूर्ण मंत्रणा देने वाला कहा गया है। सूर्यदेव ऊतू और प्रेम की देवी इनन्ना का सम्बन्ध चन्द्रदेव सिन' अथवा 'मन्ना' से माना गया है। कृषि के देवता के रूप में तामूज और सिंचाई के देवता के रूप में निगिरसू का उल्लेख है।
द्वैतवाद :- का अभाव सुमेरियन धर्म में द्वैतवाद का दर्शन नहीं होता । वस्तुतः में हर सुमेरियन देवी-देवता में सत्य और असत्य प्रवृत्तियाँ विद्यमान तो थीं। लेकिन सत्य प्रवृत्तियाँ ही क्रियाशील थी, असत्य प्रवृत्तियों का केवल परिकल्पना किया गया था सत्यता तो यह है कि असत्य प्रवृत्तियाँ सत्य प्रवृत्तियों के वशीभूत थीं। उन्होंने नर्गल नामक एक असत्य के प्रेरक देवता की कल्पना की थी किन्तु इसका स्थान लगभग नगण्य ही रहा। इस प्रकार सुमेरियन एक ही देवता में शुभ एवं अशुभ गुणों के सन्निधान मानते थे जैसे एनलिल यदि एक ओर सृष्टि का सर्जक था तो दूसरी ओर उसके विनाश का भी कारण ।
लौकिकता :- सुमेरियन धर्म पूर्णतः लौकिक था। इसमें लोकान्तर सम्बन्धी मान्यताओं को कोई स्थान नहीं था। यदि मिला भी था तो उसे गुप्त ही कहा जा सकता है। उनका विश्वास था कि मरने के बाद मृतात्मा को कुछ समय के लिए शियोल नामक लोक में जाना पड़ता है। यहाँ पर कुछ दिन रहने के पश्चात मृत्ततात्मा गायब हो जाती है। उनके विश्वास के अनुसार अधोलोक में जिसका शासन नार्मल करता था. पापात्माएँ एवं पुण्यात्माएँ दोनों रहती थीं। प्राचीन मिस्र के समान सुमेरियन न तो स्वर्ग-नरक में विश्वास करते थे न लौकिक कर्मों को इसके निर्धारण में जरूरी मानते थे, न उन्होंने वरदान एवं दण्ड की शाश्वत व्यवस्था की ही परिकल्पना की थी। उनकी उपासनादि का ६ येय लौकिक सुख-समृद्धि प्राप्त करने तक ही सीमित था। इसका उद्देश्य परलोक प्राप्त करना नहीं था। इसका पुरस्कार वे लौकिक जीवन में पाना चाहते थे।
आख्यान की प्रधानता :- सुमेरियन धर्म आख्यान प्रधान था यहाँ कई प्रकार आख्यान सृजित किए गए थे। इनमें सृष्टि एवं प्रलय आख्यान विशेष विख्यात थे। इनका प्रभाव परवर्ती हिब्रू धर्म-कथाओं पर पड़ा था। जिस दैवी संघर्ष का वर्णन सृष्टि आख्यान में मिलता है उसमें अन्तिम विजय मार्दुक की होती है। इसमें संसार का सृजन मार्दुक द्वारा मारे गए एक व्यक्ति द्वारा कल्पित है। मनुष्य मिट्टी तथा रक्त के मिश्रण से बना है। सम्यक रूप से देखने से पता चलता है कि इस व्याख्यान में बर्बरता का पुट पर अधिक था तथा नैतिक और आध्यात्मिक तत्व सर्वथा उपेक्षित थे। इसी प्रकार प्रलय सम्बन्धी आख्यान भी बर्बरता एवं प्राचीनता से प्रभावित था।
यह स्पष्ट है कि सुमेरियनों के धार्मिक भावना के विकास का कारण था भय कल्पना तथा विश्वास। जिन वस्तुओं से डरते थे उनको दैवीय मान लेते थे। जिनमें विश्वास करते थे काल्पनिक आधारों पर आधारित करते थे। इसलिए विश्व की उत्पत्ति तथा नष्ट होने के सम्बन्ध में अनेक कल्पना जनित आख्यान प्रचलित थे।
निष्कर्ष
Important Hub मैं आप का स्वागत है दोस्तों इस इस पोस्ट के माध्यम से हम सुमेरियन के जीवन में धर्म दर्शन के बारे में जानकारी दिया गया। अगर यह हमारा पोस्ट आपको अच्छा लगे तो अधिक से अधिक शेयर करें।
FAQ
Q. सुमेरियन देवताओं का स्वरूप
A. सुमेरियन बहुदेववादी थे, परन्तु उनके देवतओं का शुभ एवं अशुभ शक्तियों में विभाजन नहीं हुआ था।
Q. सुमेरियाई लोगों के धार्मिक कर्मकांड कहाँ पर होते?
A. सुमेरियन धर्म था धर्म का अभ्यास किया और के लोगों द्वारा पालन सुमेर , पहले साक्षर की सभ्यता प्राचीन मेसोपोटामिया ।