राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त : राष्ट्रप्रेम का भाव भरने वाला कवि

  राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त : राष्ट्रप्रेम का भाव भरने वाला कवि 

देवानंद राय

"जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं,वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं" भारत में शायद ही कोई होगा जिसने यह पंक्तियां सुनी ना हो कहीं पढ़ा ना हो जब देश प्रेम की बात आती है तब तक राष्ट्रकवि के नाम से मशहूर मैथिलीशरण गुप्त की यह पंक्तियां देशवासियों को देश प्रेम के भाव से भर देती हैं उन्हें प्रेरित करती हैं देश के लिए कुछ नया करने को, प्रोत्साहित करती हैं देश का मान बढ़ाने को तभी तो उनकी यह पंक्तियां अमर पंक्तियों के रूप में भी जानी जाती हैं। इस समय इस महान कवि के जिक्र का कारण यह है कि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 को चिरगांव, झांसी में हुआ था इनके पिता का नाम सेठ राम चरण तथा माता का नाम श्रीमती काशीबाई था। 


 इनके पिता 'कनकलता' उपनाम से कविता किया करते थे देश आज उन्हें राष्ट्रकवि के नाम से जानता है परंतु मैथिलीशरण गुप्त साहित्य जगत में दद्दा के नाम से भी जाने जाते थे मैथिलीशरण गुप्त ने संस्कृत, हिंदी तथा बंगला साहित्य का व्यापक अध्ययन किया। उनके व्यक्तित्व में पुरातन संस्कारों तथा आधुनिक विचारों का बहुत शानदार समन्वय था ऐसे विरले ही लोग होते हैं जिनमें इस प्रकार पुरातन तथा नूतन युग के संस्कारों, रीति-रिवाजों और चलन का संतुलन देखने को मिलता है 

मैथिलीशरण गुप्त जी स्वभाव से ही लोकसंग्रही कवि थे वह अपने आसपास, अपने देश अपने समय, कालखंड की समस्याओं के प्रति काफी संवेदनशील रहे वह संवेदनशील होने के साथ उग्र विचारधारा को भी प्रेम करते थे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में "लाल-पाल-बाल" के नाम से मशहूर तिकड़ी लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल, बाल गंगाधर तिलक उनके आदर्श रहे बाल गंगाधर तिलक को तो वैलेंटाइन शिरोल ने भारत में अशांति का जनक कहा था। मैथिलीशरण गुप्त का गर्म मन और क्रांतिकारी विचारधारा उनकी काव्य में साफ तौर पर झलकती है 1909 में आया उनका काव्य जयद्रथ वध जो उनका पहला काव्य भी था इसका सटीक उदाहरण है 

जयद्रथ वध की लोकप्रियता ने उन्हें लेखन की ओर और और अधिक प्रेरित किया तो वहीं भारत-भारती में भी राष्ट्रकवि के क्रांतिकारी उद्घोष स्पष्ट झलकते हैं। मैथिलीशरण गुप्त जी खड़ी बोली के प्रथम महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाने जाते हैं महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से उन्होंने खड़ी बोली को अपनी रचना और कविताओं की भाषा बनाई तथा खड़ी बोली को काव्य की भाषा बनाने में पूरा योगदान दिया मैथिलीशरण गुप्त जी की प्रसिद्धि का मूल काव्य भारत भारती को कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी स्वतंत्रता संग्राम के उन दिनों मैथिलीशरण की भारत -भारती स्वतंत्रता संग्राम की घोषणा पत्र बन चुकी थी स्वदेश प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान भारत और भावी भारत के दुर्दशा से उबरने के समाधान के खोज में यह काव्य अपने आप में एक विशिष्ट स्थान रखता है भारत भारतीय तीन भागों में है जो क्रमशः अतीत खंड, वर्तमान खंड और भविष्य खंड है हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान देने वाले महावीर प्रसाद द्विवेदी जिनके योगदान को देखते हुए हिंदी युग का दूसरा युग जो द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है उन्होंने इस भारत भारती काव्य पर कहना था कि यह काव्य वर्तमान हिंदी में युगांतर उत्पन्न करने वाला है महावीर प्रसाद द्विवेदी ने प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का संपादन भी किया। छायावाद के जनक के रूप में जयशंकर प्रसाद को जाना जाता है तो वहीं खड़ी बोली के जनक के रूप में भारतेंदु हरिश्चंद्र को जाना जाता है मैथिलीशरण की प्रमुख रचनाएं पंचवटी, साकेत, यशोधरा आदि हैं।

 मैथिलीशरण गुप्त को काव्य का शिरोमणि भी कहा जाता है साकेत और जय भारत उनके द्वारा रचित दो उनके प्रसिद्ध महाकाव्य है साकेत मुख्यता राम कथा पर आधारित है परंतु इसके मूल में नायक राम नहीं बल्कि उनके छोटे भाई लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला है साकेत में उन्होंने उर्मिला और लक्ष्मण जी के दांपत्य जीवन का वर्णन किया है और उर्मिला के विरह दशा का मार्मिक चित्रण भी किया साथ ही कैकेयी के पश्चाताप और उसके चरित्र का अन्य पक्षों का मनोवैज्ञानिक पक्ष पेश किया इसी प्रकार यशोधरा में गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा को केंद्र में रखकर उसके मन की स्थितियों को निम्न प्रसिद्ध पंक्तियों से के साथ दुनिया के समक्ष रखा - सिद्ध हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात पर चोरी चोरी गए,यह बड़ी आघत सखि वे मुझसे कहकर जाते।

 तो वही विष्णुप्रिया में चैतन्य महाप्रभु की पत्नी विष्णु प्रिया को केंद्र में रखकर रचना की है स्त्रियों के वेदना पर लेखन की प्रेरणा उन्होंने विश्व कवि नोबेल पुरस्कार विजेता रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा बांग्ला भाषा में रचित काव्येर उपेक्षित नार्या लेख से प्राप्त किया था। और स्त्रियों के वेदना को स्वर देते हुए "अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में दूध और आंखों में पानी" मैथिलीशरण गुप्त सिर्फ स्त्रियों की वेदना और राष्ट्रप्रेम तक ही सीमित नहीं रहे उन्होंने प्रकृति का सुंदर वर्णन करते हुए पंचवटी खंडकाव्य में क्या खूब लिखा है जो आज भी प्रसिद्ध है "चारुचंद्र की चंचल किरणें खेल रही है, जल थल में स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है,अवनि और अंबर तल में" 3 अगस्त को प्रतिवर्ष उनकी जयंती कवि दिवस के रूप में मनाई जाती है 1987 में हिंदुस्तानी एकेडमी ने पहली बार उनकी जयंती को कवि दिवस के रूप में मनाया था वह 3 अप्रैल 1952 से 2 अप्रैल 1964 तक राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे तथा 1954 में उन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया।मैथिलीशरण गुप्त ने हिंदी साहित्य में गद्य,पद्य,नाटक आदि को मिलाकर हिंदी की लगभग 74 रचनाएं रचित जिसमें दो महाकाव्य बीस खंडकाव्य, सत्रह गीतकाव्य,चार नाटक और गीत नाटक शामिल है।इस प्रकार उन्होंने हिंदी साहित्य में अपना बहुमूल्य योगदान दिया।

 हिंदी साहित्य में अमूल्य योगदान देने वाले राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि की उपाधि 1936 में गांधी जी ने दी थी।"सखि, वे मुझसे कहकर जाते, कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते ?" ये छायावादी कवि मैथिलीशरण द्वारा रचित उनकी प्रसिद्ध कविता का एक भाग है जिसमें भगवान बुद्ध के पत्नी यशोधरा के स्वाभिमानी रुप का वर्णन किया गया है यशोधरा को यह दुख है कि उसके पति को जाना ही था तो उसे बता कर जाते उसे बिना बताए क्यों गए अगर पति मुझसे कहकर जाते तो शायद अपनी राह में बाधा ही नहीं पाते।राष्ट्रकवि कहे जाने वाले मैथिलीशरण गुप्त ने अपने जीवन में कई रचनाएं रची जिन्हें हमेशा याद रखा जाएगा। परंतु मैथिलीशरण की वह रचना जिसने ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया और अंग्रेजों को इस पर बैन लगाना पड़ा वह रचना थी प्रसिद्ध भारत भारती। मानवीय मनोभाव के अद्भुत शिल्पकार के रूप में प्रसिद्ध राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त बचपन में एक बार कहा था कि मैं क्यों पढ़ाई करूंगा ? मैं पढ़ने के लिए पैदा नहीं हुआ। 

लोग मुझे पढ़ेंगे पर बचपन में कही बात उन्हें शायद यह नहीं पता होगा कि वह सही हो जाएगी आज पूरा देश उनकी रचनाओं को पढ़ता है। उससे प्रेरित होता है उसके सम्मान में नतमस्तक होता है‌।हिंदी साहित्य में खड़ी बोली की शुरुआत करने वाले कवि मैथिलीशरण गुप्त को महात्मा गांधी ने राष्ट्रकवि की उपाधि थी। वे पद्मभूषण से भी सम्मानित हो चुके हैं। उनकी विभिन्न रचनाएं देश के अलग-अलग हिस्सों के शैक्षणिक बोर्डों के पाठ्यक्रम का हिस्सा है।

 जिसमें से एक प्रसिद्ध कविता की पंक्तियां उत्तर प्रदेश के शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम में भी पढ़ाई जाती है जो निम्न है "चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही है जल थल में, स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है अवनि और अंबर तल में।मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक हिंदी काव्य के निर्माता माने जाते हैं राष्ट्रीय सांस्कृतिक नवजागरण में उन्होंने संस्कृति, इतिहास और साहित्य में देशभक्ति विश्वास प्रेम सद्भावना वैश्विक कल्याण का जो विचार अपने लेखन से उत्पन्न किया था उसकी सबसे बेहतरीन अभिव्यक्ति उनकी कविताओं में ही हुई है। जिनमें से एक है भारत भारती के अतीत खंड से प्रसिद्ध पंक्तियां संसार को पहले हमीं ने ज्ञान भिक्षा दान की, आचार की, व्यवहार की, व्यापार की, विज्ञान की।काव्य के क्षेत्र में अपने लेखन से संपूर्ण देश में राष्ट्रभक्ति की भावना जगाने वाले पद्मभूषण, पद्म विभूषण से अलंकृत भारतीय साहित्य जगत के अनमोल रत्न राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन।

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