प्राचीन मिश्र का धर्म
उत्तर मिस्र के वास्तुकारों की सफलता एवं प्रतिमा का वास्तविक निदर्शन पिरामिडों में दिखायी पड़ता है। पिरामिड शब्द मिस्री पि-रे-मस से व्युत्पन्न है जिसका अर्थ ऊँचा होता है। मिस्र के चतुर्थ राजवंश के शासक खुफू के शासन काल में 2900 ई० पू० मैं मेम्फिस के निकट गीजे में विश्व का प्रसिद्ध पिरामिड बनाया गया। इतिहासकार हेरोडोट्स के मतानुसार केवल पत्थर की खुदाई में एक लाख श्रमिकों ने दस वर्ष तक कार्य किया था। इस प्रकार इसे एक लाख श्रमिकों ने बीस वर्ष में पूर्ण किया। यह लगभग 13 एकड भूमि में फैला है। यह लगभग 480 फीट ऊँचा है तथा इसका वर्गाकार विस्तार लगभग 755 फीट है। इसमें कुल 23 लाख शिलाखण्ड लगाये गये है जिनका औसत भार 2.55 मीट्रिक टन हैं इनमें कुछ का भार तो 15. 3 मैट्रिक टन तक है। एक पत्थर को दूसरे पर इतनी सावधानी से रखा गया है कि कहीं कहीं तो दोनों के बीच का अन्तर बाल से भी कम है। एक पत्थर को दूसरे से किस मसाले से जोड़ा गया है आज भी वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बना है। इसमें कहीं भी एक इंच से अधिक नाम-जोख की त्रुटि नहीं है। पिरामिड निर्माताओं की तुलना आधुनिक चश्मा फरोशों से की गयी है। दोनों में केवल इस दृष्टि से अन्तर है कि पिरामिड हेक्टेयर के पैमाने पर कार्य करते थे जबकि चश्माफरोश सेण्टीमीटर के पैमाने पर करते हैं। लगभग 2.5 मीट्रिक टन से 15.3 मीट्रिक टन भार के शिलाखण्डों को उनके उद्गम स्थल से अपेक्षित स्थल तक पहुँचाना साधारण कार्य नहीं था। विशेषतः उस समय जब क्रम या घिरनी का आविष्कार नहीं किया गया था। कहा जाता है कि बड़े-बड़े प्रस्तरों में बरमा की मदद से थोड़ा सा छिद्र बनाकर उसमें लकड़ी की कील लगा देते थे। पानी पड़ने से कीलें फूलती थी जिससे चट्टाने एक दूसरे से पृथक् हो जाती थी। इन्हें नदी के किनारे-किनारे आते थे फिर रोलर की मदद से उस स्थान पर ले जाया जाता था जहाँ उसे लगाना होता था। सम्पूर्ण पिरामिड ठोस बनाया गया है। केवल एक जगह दो-तीन शिलाखण्ड नहीं है। यहाँ पर एक सकरा रास्ता भीतर की ओर जाता है इसी से सम्राट के राव को अन्दर लाया जाता था। इसी रास्ते से यात्री अन्दर की तरफ जाते हैं तथा सीढ़ियाँ पार करके अन्ततः -केन्द्र में पहुँच जाते है। यहीं अंधुरे एवं गुप्त स्थान पर खुफु तथा उसकी महारानी के शव रखे गये थे। संगमरमर से निर्मित खण्डित और खाली शवपेटिका अभी तो सुरक्षित है।
गिजेह के पिरामिड की गणना संसार के सात आश्र्थयों में की गई है। इसमें मिस्रियों की कलात्मक दक्षता ही नहीं अपितु शासकों की ईच्छा शक्ति, सुदृढ़ता एवं अदम्य उत्साह तथा कार्यक्षमता का भी अनुमान लगाया जा सकता है।