अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त (THEORY OF OPTIMUM POPULATION)
माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त को उसके प्रकाशित होते ही कटु आलोचनाओं का शिकार बनना पड़ा। इन आलोचनाओं ने इस समस्या पर एक नवीन दृष्टिकोण से विचार करने के लिए प्रेरणा प्रदान की। आधुनिक अर्थशास्त्री इस दृष्टिकोण को मानने के लिए तैयार नहीं हुए कि जनसंख्या की प्रत्येक वृद्धि हानिकारक होती है। अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त में किसी देश की आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इस बात का अध्ययन किया जाता है कि उस देश की बढ़ती हुई जनसंख्या लाभदायक है या हानिकारक ? प्रो. सेलिगमैन (Saligman) के विचारानुसार जनसंख्या की समस्या केवल संख्या या आकार (Number or size) की समस्या नहीं है वरन यह कुशल उत्पादन तथा न्यायपूर्ण वितरण की समस्या है। इस नवीन दृष्टिकोण के आधार पर अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया। यह सिद्धान्त किसी देश की राष्ट्रीय आय तथा जनसंख्या वृद्धि को सम्बन्धित कर यह पता लगाने का प्रयास करता है कि अधिकतम आय या उत्पादन की दृष्टि से जनसंख्या का आकार अनुकूलतम है अथवा नहीं। यह सिद्धान्त जनसंख्या में वृद्धि की दर या कारणों पर प्रकाश नहीं डालता बल्कि यह जानने का प्रयास करता है कि उत्पत्ति के साधनों तथा जनसंख्या का अनुपात अनुकूलतम या सर्वोत्तम है अथवा नहीं। इस प्रकार माल्थस का सिद्धान्त एक सामान्य सिद्धान्त है जो हर देश पर समान रूप से लागू होता है, जबकि अनुकूलतम सिद्धान्त एक विशिष्ट सिद्धान्त है जो किसी देश की आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उसकी जनसंख्या सम्बन्धी समस्या का अध्ययन करता है। इस प्रकार, माल्बस के जनसंख्या सिद्धान्त की अपेक्षा अनुकूलतम सिद्धान्त अधिक यथार्थपरक है।
सर्वप्रथम एडवर्ड वेस्ट ने सन् 1815 ई. में अपने "Essay on the Application of the Capital to Land" नामक लेख में यह विचार व्यक्त किया कि जनसंख्या के बढ़ने के साथ-साथ श्रम में विशिष्टता: आ जाती है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है। इस विचार को इस सिद्धान्त का मात्र संकेत ही समझना चाहिए। इसके उपरान्त उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में सिजविक ने अनुकूलतम जनसंख्या के विचार की नींव रखी। उन्होंने बताया कि एक अनुपात में यदि सब साधनों को लगाया जाय तो एक ऐसा बिन्दु आता है जबकि उत्पादन अधिकतम होता है। यद्यपि उन्होंने अनुकूलतम शब्द का प्रयोग नहीं किया लेकिन उनका संकेत उसी तरफ था। इस कथन का सहारा लेकर एडविन कैनन (Edwin Cannon) ने सन् 1924 ई. में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'Wealth' में सर्वप्रथम अनुकूलतम शब्द का प्रयोग कर अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धान्त की प्रस्थापना की। आगे चलकर रॉबिन्स (Robbins), डाल्टन (Daltan) तथा कार साण्डर्स (Carr Saunders) ने इस सिद्धान्त को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की मान्यताएं (ASSUMPTIONS OF THE OPTIMUM THEORY OF POPULATION)
अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त निम्नलिखित आधारभूत मान्यताओं पर आधारित है :
(1) एक निश्चित एवं दिए हुए समय के लिए अर्थव्यवस्था में पूंजी, तकनीक तथा प्राकृतिक साधनों में कोई परिवर्तन नहीं होता अर्थात् जनसंख्या में वृद्धि होने पर प्रारम्भ में उत्पत्ति वृद्धि नियम कार्यशील होता है, लेकिन एक सीमा के उपरान्त उत्पत्ति हास नियम क्रियाशील होने लगता है।
(2) जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ कार्यशील जनसंख्या भी उसी अनुपात में बढ़ती है। अनुकूलतम जनसंख्या से अभिप्राय उस जनसंख्या से है जो किसी देश में एक निश्चित समय पर दिए हुए साधनों का अधिकतम उपयोग तथा उत्पादन के लिए आवश्यक है। जब देश की जनसंख्या का आकार आदर्श रहता है तो प्रति व्यक्ति आय अधिकतम होती है। इस प्रकार एक विशेष समय तथा परिस्थितियों में वही जनसंख्या सर्वोत्तम होती है जिसमें प्रति व्यक्ति आय अधिकतम होती है।
अनुकूलतम जनसंख्या के सन्दर्भ में एडविन कैनन ने अपना मत व्यक्त करते हुए स्पष्ट किया है कि "किसी देश में एक दिए हुए समय पर अधिकतम उत्पादन का एक बिन्दु आता है जहां पहुंचकर जनसंख्या तथा साधनों का पूर्ण समन्वय हो जाता है। इस बिन्दु से जनसंख्या के कम या अधिक होने पर कुल राष्ट्रीय उत्पादन में कमी आ जाती है। यदि सम्पूर्ण अर्थ व्यवस्था को उस बिन्दु तक लाने के लिए जनसंख्या अपर्याप्त