शेरशाह के प्रशासनिक सुधार
(1) केन्द्रीय शासन— शेरशाह का केन्द्रीय शासन अत्यन्त उत्तम श्रेणी का था। वह एक निरंकुश और स्वेच्छाचारी शासक के रूप में शासन का केन्द्र-बिन्दु था। शासन की समस्त शक्तिया सम्राट में ही निहित रहती थीं। यह अपने को ईश्वर का प्रतिनिधि मानता था। वह अपने राज्य में उच्च पदों पर पदाधिकारियों को स्वयं नियुक्त करता था। वही प्रधान न्यायाधीश एवं प्रधान सेनापति था। उसकी आज्ञा ही कानून होती थी। यद्यपि वह एक निरंकुश शासक अवश्य था, किन्तु अत्याचारी सम्राट नहीं था।
प्रशासकीय कार्यों में सम्राट को सहयोग देने के लिए एक मन्त्रि-परिषद् होती थी। केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् के मुख्यमन्त्री -
(1) दीवाने-विजारत (लगान और अर्थव्यवस्था अधिकारी).
(ii) दीवाने आरिज (सेना के प्रशासन और प्रबन्ध का अधिकारी),
(iii) दीवाने रसालत (विदेश मन्त्री),
(iv) दीवाने इंशा (प्रशासन का रिकॉर्ड रखने वाला अधिकारी) आदि थे।
(2) प्रान्तीय शासन - शेरशाह के प्रान्तीय शासन के विषय में सभी विद्वान् एकमत नहीं हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार उसका सम्पूर्ण राज्य 12 प्रान्तों, तो कुछ के अनुसार 17 प्रान्तों में बँटा हुआ था। इतना सुनिश्चित है कि उसका राज्य अनेक प्रान्तों (सूवा या इक्ता) में बँटा हुआ था और प्रत्येक प्रान्त का एक अधिकारी होता था, जो अमीर या फौजदार कहलाता था। राजा का प्रान्तों पर भी कठोर नियन्त्रण रहता था। प्रान्त के अधिकारी अपने कार्यों के लिए राजा के प्रति उत्तरदायी होते थे।
(3) सरकार (जिला) का प्रशासन—प्रत्येक प्रान्त सरकारों (जिलों) में बँटा होता था। सरकार के दो प्रमुख अधिकारी शिकदार-ए-शिकदारान और मुन्सिफ-ए-मुन्सिफान होते थे। शिकदारे शिकदारान (प्रधान शिकदार) का प्रमुख कार्य सरकार (जिले) में शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित करना और आन्तरिक विद्रोहों को दबाना होता था। मुन्सिफ न्याय सम्बन्धी कार्यों को सम्पन्न करता था। जिले (सरकार) में इन दोनों अधिकारियों को परगने के अधिकारियों का निरीक्षण करने का भी अधिकार प्राप्त होता था, परन्तु इन अधिकारियों की सहायता के लिए अनेक सहायक अधिकारी होते थे।
(4) परगनों का शासन प्रबन्ध-शेरशाह के समय में प्रत्येक सरकार (जिला) कई परगनों में विभाजित था।
परगनों का शासन-प्रबन्ध शिकदार, अमीन, पोतदार (खजांची) तथा कारकुन (लिपिक) के द्वारा होता था।
(5) गाँव का शासन प्रबन्ध-गाँव का शासन प्रबन्ध ग्राम पंचायतें करती थीं। प्रत्येक गाँव में पटवारी, मुकद्दम चौकीदार इत्यादि राजकीय कर्मचारी होते थे। ग्राम की अपनी पंचायत होती थी, जो ग्राम में शिक्षा, सफाई, सुरक्षा, न्याय आदि का कार्य करती थी।
(6) भूमि-प्रबन्ध— शेरशाह से पहले भूमि-प्रबन्ध में अनेक दोष व्याप्त थे। अतः शेरशाह ने इन दोषों को दूर करके, अपनी नई भूमि व्यवस्था का प्रारम्भ किया था। ये सुधार एवं व्यवस्थाएँ इस प्रकार थीं-
(i) सर्वप्रथम उसने राज्य की सम्पूर्ण भूमि सिकन्दरी गज' का प्रयोग करके नपवाई। फिर भूमि की तीन श्रेणियों (उत्तम, मध्यम और निम्न) निश्चित कीं। भूमि कर लेने की तीन प्रणालियाँ भी निश्चित की गई। तीन प्रकार के कर—
(क) फसल के अनुसार लगान।
(ख) लगान आदि की व्यवस्था करने वाले अधिकारियों के वेतन के लिए जरीवाना एवं महासीलाना के रूप में कर देना।
(ग) पैदावार का 22% अकाल, बाढ़ आदि संकटकालीन परिस्थितियों हेतु गल्लाघरों में जमा करना।
(ii) शेरशाह किसानों पर उपज और भूमि की श्रेणी के अनुसार भूमि कर लगाता था।
(ii) शेरशाह ने किसानों को भूमि के कबुलियत (पट्टे दिलवाकर उन्हें भूमि का स्थायी स्वामी बना दिया। इससे जमींदारी प्रथा सम्बन्धी दोष समाप्त हो गए।
(iv) शेरशाह ने किसानों की सुविधा के लिए नकद और अनाज, दोनों ही रूपों में भूमि कर लेने को व्यवस्था की। शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं का लगान सिक्कों (मुद्रा) के रूप में ही देना पड़ता था।