सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक (DEMOGRAPHIC FACTORS OF SOCIAL CHANGE]
प्रत्येक घटना के पीछे कोई न कोई कारण होता है। सामाजिक परविर्तन भी किसी-न-किसी कारक का ही परिणाम है। सामाजिक परिवर्तन को समझाने के लिए हमें उन कारकों को भी जानना होगा जो परिवर्तन के लिए उत्तरदायी हैं। एक रोमन कवि लुक्रेटिस का कथन है कि "वह व्यक्ति सबसे मुखी है जो वस्तुओं के कारण को जान लेता है।" विभिन्न विद्वानों ने सामाजिक परिवर्तन के लिए विभिन्न कारकों को उत्तरदायी माना है, जैसे मार्क्स ने आर्थिक कारक को, कॉस्ट ने बौद्धिक विकास की, स्पेन्सर ने विभेदीकरण की सार्वभौमिक प्रक्रिया को, देवर ने धर्म को, सोरोकिन ने संस्कृति को तथा आँगबर्न ने सांस्कृतिक पिछड़न को सामाजिक, परिवर्तन के लिए उत्तरदायी माना है। वास्तविकता यह है कि सामाजिक परिवर्तन के लिए कोई एक कारक उत्तरदायी नहीं है वरन यह अनेक कारकों के सामूहिक प्रभावों से बटित होता है। इस सन्दर्भ में रोज लिखते हूँ. "सम्भवतः सामाजिक परिवर्तन का कोई कारण अथवा कारणों की श्रृंखला सभी समाजों में सभी परिवर्तना के लिए उत्तरदायी नहीं है और न सिर्फ एक कारण ही किसी एक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है।" हम यहां सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक तथा जैविकीय कारकों का उल्लेख करेंगे।
सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक। (DEMOGRAPHIC FACTORS OF SOCIAL CHANGE)
सामाजिक परिवर्तन लाने में जनसंख्यात्मक कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये किसी देश की जनसंख्या, जन्म-दर, मृत्यु-दर, आवास-प्रवास, लिंग अनुपात वालक, युवा तथा वृद्धों की संख्या, आदि सामाजिक संरचना, सामाजिक संगठन तथा अर्थ व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। परिवार एवं विवाह का स्वरूप गरीबी, बेकारी, समृद्धि, परिवार नियोजन, जन्म निरोध सम्बन्धी सरकार की नीति आदि सभी पर जनसंख्यात्मक कारकों का प्रभाव पड़ता है। जनसंख्या के आधार पर ही उस देश की सामाजिक संरचना ज्ञात की जा सकती है। पिछड़े राष्ट्रों की बढ़ती हुई जनसंख्या ने वहां के आर्थिक विकास की गति को प्रभावित किया है, वहां श्रम शक्ति बेकार हुई है, छात्र असन्तोष बढ़ा है तथा अपराध और तोड़-फोड़ की कार्यवाहियां हुई हैं। किसी देश के भविष्य का निर्माण करने तथा उसे खुशहाल बनाने में वहां की जनसंख्या का बहुत बड़ा योगदान होता है।
जनसंख्या की प्राणीशास्त्रीय विशेषताएं सामाजिक क्रियाओं एवं व्यवहारों को प्रभावित करती हैं। आने बाली पीढ़ी में जनसंख्या की मात्रा, जनसंख्या वृद्धि दर, उसके स्वास्थ्य का स्तर, शारीरिक एवं मानसिक क्षमता कितनी होगी, यह बहुत कुछ सामाजिक पर्यावरण व प्राणीशास्त्रीय कारकों पर निर्भर करता है। जिस उधर सामाजिक सांस्कृतिक पर्यावरण जनसंख्या और उसके शारीरिक लक्षणों को प्रभावित करते हैं, उसी प्रकार जनसंख्या की प्राणीशास्त्रीय विशेषताएं भी जनसंख्या के आकार एवं प्रकार को निर्धारित करती हैं। सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारकों की भूमिका का उल्लेख करने से पूर्व यहां जनसंख्यात्मक कारकों का अर्थ जान लेना आवश्यक है।